आरतियाँ |
मंगल आरती - माता की पहली आरती मंगल आरती कहलाती है | प्रात: ब्रह्ममुहूर्त में लगभग ४.०० बजे पुजारी मंदिर खोलता है और घंटा बजा कर माता को जगाया जाता है | तदनंतर माता की शेय्या समेट कर रात को गडवी में रखे जल से माता के चक्षु और मुख धोये जाते है | उसी समय माता को काजू, बादाम, खुमानी, गरी, छुआरा, मिश्री, किशमिश, आदि में से पांच मेवों का भोग लगाया जाता है | जिसे 'मोहन भोग ' कहते है | मंगल आरती में दुर्गा सप्तशती में वर्णित महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, के ध्यान के मंत्र बोले जाते है | माता के मूल बीज मंत्र और माता श्रीनयनादेवी के ध्यान के विशिष्ट मंत्रो से भी माता का सत्वन होता है | ये विशिष्ट मन्त्र गोपनीय है | इन्हें केवल दीक्षित पुजारी को ही बतलाया जा सकता है | श्रृंगार आरती - श्रृंगार आरती के लिए मंदिर के पृष्ठ भाग की ढलान की और निचे लगभग २ किलोमीटर की दुरी पर स्थित 'झीडा' नामक बाऊडी से एक व्यक्ति जिसे 'गागरिया' कहते है , नंगे पांव माता के स्नान एवं पूजा के लिए पानी की गागर लाता है | श्रृंगार आरती लगभग ६.०० बजे शुरू होती है जिसमे षोडशोपचार विधि से माता का स्नान तथा हार श्रृंगार किया जाता है | इस समय सप्तशलोकी दुर्गा और रात्रिसूक्त के श्लोको से माता की स्तुति की जाती है | माता को हलवा और बर्फी का भोग लगता है जिसे 'बाल भोग' कहते है | श्रृंगार आरती उपरांत दशमेश गुरु गोविन्द सिंह जी द्वारा स्थापित यज्ञशाला स्थल पर हवन यज्ञ किया जाता है | जिसमे स्वसित वाचन, गणपतिपुजन, संकल्प, स्त्रोत, ध्यान, मन्त्र जाप, आहुति आदि सभी परिक्राएं पूर्ण की जाती है | मध्यान्ह आरती - इस अवसर पर माता को राज भोग लगता है | राज भोग में चावल, माश की दाल, मुंगी साबुत या चने की दाल, खट्टा, मधरा और खीर आदि भोज्य व्यंजन तथा ताम्बूल अर्पित किया जाता है | मध्यान्ह आरती का समय दोपहर १२.०० बजे है | इस आरती के समय सप्तशलोकी दुर्गा के श्लोको का वाचन होता है | सायं आरती - सायं आरती के लिए भी झीडा बाऊडी से माता के स्नान के लिए गागरिया पानी लाता है | लगभग ६.३० बजे माता का सायंकालीन स्नान एवं श्रृंगार होता है | इस समय माता को चने और पूरी का भोग लगता है | ताम्बूल भी अर्पित किया जाता है | इस समय के भोग को 'श्याम भोग' कहते है | सायं आरती में सोंदर्य लहरी के निम्नलिखित श्लोको का गायन होता है - शयन आरती - रात्रि ९.३० बजे माता को शयन करवाया जात है | इस समय माता की शेय्या सजती है | दुध् और बर्फ़ी का भोग लगता है | जिसे 'दुग्ध् भोग' के नाम से जाना जाता है | शयन आरती के समय भी श्रीमदशकराचार्य विरचित सोन्दर्य लहरी के निम्नलिखित श्लोको के सस्वर गायन के साथ् माता का सत्वन होता है | |